रामायण की दुनिया में एक ऐसी कहानी छिपी है, जो दिल को छू लेती है और रोमांच से भर देती है। यह है बाली और सुग्रीव की कथा दो भाइयों की कहानी, जिसमें प्यार, गुस्सा, गलतफहमी, और बलिदान का ऐसा है कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाए। इस लेख को मैं बच्चों, बड़ों, और बुजुर्गों के लिए सरल और रोचक अंदाज़ में लिख रहा हूँ, जैसे कोई जंगल में तारों के नीचे आग जलाकर कहानी सुना रहा हो। मैं, ताकि पढ़ते वक्त आपको लगे कि आप किष्किन्धा के जंगल में ही खड़े हैं।
कभी सुना है किष्किन्धा के बारे में? यह कोई साधारण जंगल नहीं था। यहाँ विशाल पेड़ आसमान छूते थे, झरने गीत गाते थे, और रंग-बिरंगे पक्षी नाचते थे। इस जंगल में वानरों का राज था। वानर यानी बंदर, थे बुद्धिमान, ताकतवर, और एक-दूसरे के लिए जान देने वाले। किष्किन्धा का राजा था बाली, जिसके नाम से पहाड़ काँपते थे। कहते थे कि बाली एक झटके में सात पेड़ उखाड़ सकता था और उसकी छलांग चाँद तक पहुँचती थी। उसका छोटा भाई था सुग्रीव, जो ताकत में भले ही कम था, लेकिन उसका दिल सोने जैसा था। दोनों भाई एक-दूसरे के लिए जान छिड़कते थे।
बाली की पत्नी थी तारा, जो अपनी समझदारी के लिए जानी जाती थी। सुग्रीव की पत्नी थी रूमा, जो हमेशा हँसते हुए अपने पति का हौसला बढ़ाती थी। किष्किन्धा में हर दिन उत्सव जैसा होता था, लेकिन एक रात सब कुछ बदल गया।
एक काली रात, जब चाँद बादलों में छिपा था, किष्किन्धा में हलचल मच गई। एक राक्षस मायावी वहाँ आ धमका। मायावी कोई साधारण राक्षस नहीं था। उसकी आँखें आग की तरह जलती थीं, और उसकी हँसी से जंगल सिहर उठता था। उसने बाली को ललकारा, बाली, सुना है तू सबसे ताकतवर है। मुझसे लड़कर दिखा, वरना किष्किन्धा को राख कर दूँगा! बाली का खून खौल उठा। उसने अपनी तलवार उठाई और सुग्रीव को बुलाया, चल, भाई! इस राक्षस को सबक सिखाएँ!
दोनों भाई मायावी के पीछे दौड़े। राक्षस एक गहरी, डरावनी गुफा में जा छिपा। गुफा इतनी अंधेरी थी कि उसमें सूरज की किरणें भी डरती थीं। बाली ने सुग्रीव से कहा, “तू बाहर रह, गुफा का रास्ता देख। मैं इस राक्षस का अंत करता हूँ!” सुग्रीव ने सिर हिलाया और बाहर खड़ा हो गया। बाली गुफा में घुस गया, और फिर... धाड़! गड़गड़ाहट! गुफा से ऐसी आवाज़ें आईं, जैसे दो पहाड़ आपस में टकरा रहे हों। सुग्रीव का दिल धक-धक कर रहा था। वह बाहर खड़ा इंतज़ार करता रहा।
घंटे बीते, फिर दिन। सुग्रीव बाहर खड़ा था, लेकिन बाली का कोई अता-पता नहीं था। अचानक गुफा से खून की एक लाल धारा बहती हुई बाहर आई। सुग्रीव का दिल बैठ गया। यह खून... बाली का है! मायावी ने मेरे भाई को मार डाला! वह फूट-फूटकर रोने लगा। उसने सोचा कि अगर मायावी बाहर आया, तो किष्किन्धा को बर्बाद कर देगा। सुग्रीव ने हिम्मत जुटाई और गुफा का मुँह एक विशाल पत्थर से बंद कर दिया।
रोते हुए वह किष्किन्धा लौटा। उसने वानरों को बताया, बाली अब नहीं रहा। मायावी ने उसे मार डाला। वानरों का दिल टूट गया। उन्होंने सुग्रीव को नया राजा बनाया। सुग्रीव ने बाली की पत्नी तारा और किष्किन्धा की जिम्मेदारी संभाली, लेकिन उसका मन हर पल उदास रहता था। वह रात को चुपके से बाली की तलवार को देखता और रो पड़ता।
लेकिन रुकिए! कहानी में अब आता है एक धमाकेदार मोड़। बाली मरा नहीं था! उसने मायावी को गुफा में हराया था, लेकिन जब बाहर निकलने की कोशिश की, तो पत्थर ने रास्ता रोक रखा था। बाली ने अपनी सारी ताकत लगाई और पत्थर को चूर-चूर कर दिया। जब वह किष्किन्धा लौटा, तो देखा कि सुग्रीव राजा बन गया है, तारा उसके साथ है, और सब कुछ बदल गया है। बाली का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया।
उसने सुग्रीव को बुलाया और चीखा, तूने मुझे धोखा दिया! तूने मुझे मरा समझकर मेरा राज छीन लिया! सुग्रीव ने घुटनों पर बैठकर कहा, भाई, यह गलतफहमी है! मैंने तुम्हें बचाने की कोशिश की! लेकिन बाली का गुस्सा आग की तरह भड़क रहा था। उसने सुग्रीव पर हमला कर दिया। सुग्रीव डरकर भागा और ऋष्यमूक पर्वत पर जा छिपा, जहाँ बाली नहीं जा सकता था, क्योंकि वहाँ एक प्राचीन श्राप था।
सुग्रीव अब अकेला था। बाली ने उसकी पत्नी रूमा को अपने पास रख लिया था। सुग्रीव का दिल टूट चुका था। तभी जंगल में एक सुनहरा मोड़ आया। सुग्रीव की मुलाकात हुई भगवान श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण से। श्रीराम अपनी पत्नी सीता को ढूंढ रहे थे, जिन्हें रावण ने चुरा लिया था। सुग्रीव ने अपनी कहानी सुनाई, मेरे भाई ने मुझे बेघर कर दिया। मेरी पत्नी छीन ली। मैं अब क्या करूँ?
श्रीराम ने सुग्रीव का कंधा थपथपाया और कहा, डर मत, सुग्रीव। मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। तुम्हें तुम्हारा राज और सम्मान वापस दिलाऊँगा। सुग्रीव की आँखों में चमक लौट आई। श्रीराम ने कहा, बाली से लड़ो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।
सुग्रीव ने बाली को ललकारा। जंगल में दोनों भाइयों का युद्ध शुरू हुआ। पेड़ हिलने लगे, चट्टानें टूटीं, और पक्षी डरकर उड़ गए। लेकिन श्रीराम को एक मुश्किल थी – बाली और सुग्रीव एक जैसे दिखते थे! पहली बार में श्रीराम समझ नहीं पाए कि बाण किस पर चलाएँ। फिर लक्ष्मण ने एक तरकीब निकाली। उन्होंने सुग्रीव के गले में जंगली फूलों का हार डाल दिया।
अगले दिन फिर युद्ध हुआ। बाली और सुग्रीव एक-दूसरे पर बिजली की तरह टूट पड़े। तभी श्रीराम ने पेड़ के पीछे से अपना बाण चलाया। बाण सीधे बाली के सीने में लगा। बाली जमीन पर गिर पड़ा। मरने से पहले उसने श्रीराम से पूछा, आपने मुझे छिपकर क्यों मारा? श्रीराम ने कहा, बाली, तुमने अपने भाई के साथ गलत किया। तुमने उसकी पत्नी छीनी और उसे बेघर किया। बाली को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सुग्रीव को गले लगाया और कहा, भाई, मुझे माफ कर दे। मेरे बेटे अंगद का ख्याल रखना। इसके बाद बाली ने आखिरी साँस ली।
बाली की मृत्यु के बाद सुग्रीव किष्किन्धा का राजा बना। उसने रूमा को वापस पाया और श्रीराम की मदद के लिए अपनी वानर सेना को तैयार किया। इस तरह, यह कहानी एक सुखद अंत के साथ खत्म हुई। लेकिन इसके सबक हमारे लिए अनमोल हैं !
• एक छोटी-सी गलतफहमी ने बाली और सुग्रीव को अलग कर दिया। हमें बातचीत से हर समस्या सुलझानी चाहिए।
• श्रीराम और सुग्रीव की दोस्ती ने असंभव को संभव कर दिखाया।
• बाली ने अपनी गलती स्वीकारी, और यह हमें सिखाता है कि सच्चाई स्वीकार करने में ही सम्मान है।
• भाई-भाई का रिश्ता अनमोल है। प्यार और विश्वास से इसे और मजबूत करना चाहिए।
