वह पहली बार जब कॉलेज में मिली थी, तो लगा जैसे पूरी दुनिया ठहर गई हो। नाम था आयुष और वह थी सिया। दोनों अलग-अलग शहरों से थे, लेकिन किस्मत उन्हें एक ही कॉलेज में ले आई थी।हली मुलाकात लाइब्रेरी में हुई। आयुष ने देखा कि एक लड़की बड़ी तल्लीनता से कोई किताब पढ़ रही थी। उसकी आँखों में एक अजीब-सा आकर्षण था। वह चुपचाप उसके पास गया और हल्की आवाज़ में बोला !
"क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?"
सिया ने हल्का-सा मुस्कराकर कहा, "हाँ, बिल्कुल!"
वह जवाब तो दे चुकी थी, लेकिन मन ही मन उसे यह अजनबी लड़का थोड़ा अलग लगा। अगले कुछ दिनों में उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं। कभी कैंटीन में, कभी लाइब्रेरी में, और कभी किसी सेमिनार में।
आयुष को सिया का हंसमुख स्वभाव और किताबों के प्रति लगाव बहुत पसंद आया। धीरे-धीरे दोस्ती गहरी होती गई। अब वे कॉलेज में हर जगह साथ दिखने लगे थे।
एक दिन कॉलेज ट्रिप में दोनों पहाड़ियों के बीच बैठे थे। ठंडी हवा चल रही थी और सूरज ढलने को था। अचानक आयुष ने कहा,
"सिया, तुम्हें कभी किसी से प्यार हुआ है?"
सिया हंस पड़ी, "नहीं, लेकिन मैंने हमेशा सोचा है कि जब होगा, तो बहुत खास होगा!"
आयुष मुस्कराया, "और अगर किसी को तुमसे प्यार हो जाए?"
सिया थोड़ी गंभीर हो गई और बोली, "प्यार सिर्फ कह देने से नहीं होता, उसे महसूस किया जाता है।"
उस रात आयुष सो नहीं पाया। उसे एहसास हो गया था कि वह सिया से प्यार करने लगा है। लेकिन उसे डर था कि कहीं उसकी दोस्ती न टूट जाए।
कुछ महीनों बाद, वेलेंटाइन डे आया। आयुष ने तय कर लिया था कि वह अपने दिल की बात कहेगा। वह एक सुंदर गुलाब लेकर सिया के पास गया और बोला,
"सिया, तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो, लेकिन शायद मेरी भावनाएँ दोस्ती से आगे बढ़ चुकी हैं। मैं तुमसे प्यार करता हूँ।"
सिया कुछ देर चुप रही, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली,
"आयुष, तुम बहुत अच्छे इंसान हो। तुम्हारी दोस्ती मेरे लिए बहुत मायने रखती है। लेकिन मैं अभी प्यार के लिए तैयार नहीं हूँ।"
आयुष को उम्मीद थी कि सिया भी यही महसूस करती होगी, लेकिन उसका जवाब सुनकर वह थोड़ा उदास हो गया। फिर भी उसने दोस्ती बनाए रखने का फैसला किया।
कॉलेज के आखिरी साल में दोनों को अलग-अलग शहरों में नौकरी मिल गई। अब वे पहले की तरह रोज़ नहीं मिल पाते थे। बातों का सिलसिला भी धीरे-धीरे कम होता गया।
आयुष कई बार सिया से मिलने की कोशिश करता, लेकिन सिया व्यस्त होती गई। उसने यह मान लिया कि सिया उससे कभी प्यार नहीं कर सकती।
एक दिन सिया का मैसेज आया:
"आयुष, मैं शादी कर रही हूँ।"
आयुष की आँखों के सामने अंधेरा छा गया। उसने बहुत कोशिश की खुद को संभालने की, लेकिन वह अंदर से टूट गया।
कई साल बीत गए। एक दिन एक कैफ़े में बैठा आयुष कॉफी पी रहा था, तभी किसी ने पीछे से आवाज़ दी,
"कैसे हो, आयुष?"
वह पलटा तो देखा, सामने सिया खड़ी थी। उसने सिंपल सलवार-कुर्ता पहना था और अब पहले से ज्यादा परिपक्व लग रही थी।
आयुष ने मुस्कराने की कोशिश की, "मैं ठीक हूँ, तुम कैसी हो?"
सिया ने अपनी आँखें झुका लीं, "अच्छी हूँ… लेकिन कुछ अधूरा सा लगता है।"
आयुष ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "कुछ चीजें अधूरी ही रह जाएं, तो बेहतर होता है।"
सिया की आँखें नम हो गईं, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। आयुष ने अपनी कॉफी खत्म की, सिया की ओर देखा, और बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया।
प्यार अधूरा था, लेकिन यादें हमेशा ज़िंदा थीं। यह एक साधारण लेकिन गहरी प्रेम कहानी है जो दिल को छू जाती है।
