हवा में हल्की ठंडक थी, और आसमान में चमकता पूर्णिमा का चाँद धरती पर अपनी दूधिया रौशनी बिखेर रहा था।
समुंदर की लहरें किनारे को चूमती हुई वापस लौट जातीं, मानो प्रेम के किसी अधूरे गीत को दोहरा रही हों।
उसी तट पर, एक पुराने पेड़ के नीचे, आरव और सिया बैठे थे। उनकी आँखों में न जाने कितनी अनकही बातें थीं, और उनके दिलों में कितनी ही कसमें और वादे बंधे थे!
आरव ने धीरे से सिया का हाथ अपने हाथों में लिया और कहा, सिया, ये चाँदनी रात गवाह रहेगी हमारे वादे की।
आज हम जो भी कहेंगे, उसे पूरा करना हमारी ज़िंदगी का मकसद होगा।
सिया की आँखों में नमी थी, लेकिन उसमें प्रेम की चमक भी थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा,
मुझे तुम पर पूरा विश्वास है, आरव। पर क्या यह वादा इतना मजबूत होगा कि वक्त की आँधियाँ भी इसे हिला न सकें?
आरव ने हल्के से उसके गालों पर हाथ फेरा और कहा, अगर हमारा प्यार सच्चा है!
तो कोई भी मुश्किल इसे नहीं तोड़ सकती। मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा, चाहे हालात कैसे भी हों।"
रात बीतती रही, और उनकी बातें समुंदर की लहरों के साथ घुलती रहीं। पर यह प्रेम-गाथा इतनी सरल नहीं थी।
समय की धारा में प्रेम को भी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
समय बीता, और जीवन की राहों ने दोनों को अलग कर दिया। आरव को विदेश जाना पड़ा अपने करियर के लिए, और सिया अपने शहर में ही रह गई।
उन्होंने मोबाइल और पत्रों के ज़रिए संपर्क बनाए रखा, परंतु दूरियों ने उनके दिलों के बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी कर दी थी।
एक दिन, अचानक सिया को खबर मिली कि आरव ने उससे संपर्क करना बंद कर दिया है।
उसके संदेशों का कोई उत्तर नहीं आ रहा था। वह घबराई, पर उसने धैर्य बनाए रखा।
कुछ महीनों बाद उसे पता चला कि आरव की ज़िंदगी में कोई और आ गया है।
दिल टूट गया था सिया का। जिस चाँदनी रात में उसने वादा किया था, वह रात अब उसकी यादों में कांटों की तरह चुभ रही थी।
समय बीतता गया, और सिया ने अपने जीवन को नए सिरे से संवारना शुरू किया।
लेकिन उसकी आँखों में हमेशा एक सवाल रहता - क्या आरव ने सच में उसे छोड़ दिया था? या कोई और कारण था?
कुछ सालों बाद, एक दिन अचानक एक पत्र सिया के नाम आया। वह आरव का था। पत्र में लिखा था !
"सिया, मैं जानता हूँ कि मैंने तुम्हें बहुत दर्द दिया है। लेकिन मैं मजबूर था। मेरी तबीयत बहुत खराब हो गई थी और डॉक्टरों ने कहा था कि मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है।
मैं नहीं चाहता था कि तुम मेरे लिए रोओ, इसलिए मैंने तुमसे दूरी बना ली। लेकिन अब मैं वापस आ गया हूँ, ठीक होकर। क्या तुम्हारे दिल में अब भी मेरे लिए जगह है?
सिया की आँखों से आँसू बहने लगे। वह दौड़ते हुए उसी समुद्र तट पर पहुँची, जहाँ उन्होंने सालों पहले वादा किया था।
वहाँ, उसी पुराने पेड़ के नीचे, आरव उसका इंतजार कर रहा था।
उसने सिया को देखा और कहा, क्या हमारा वादा अब भी कायम है?"
सिया ने कोई जवाब नहीं दिया, बस दौड़कर उसे गले लगा लिया। चाँद फिर से चमक रहा था!
और समुंदर की लहरें फिर उसी अधूरेगीत को गा रही थीं, लेकिन इस बार वह गीत अधूरा नहीं था।
