अमृत मंथन की कथा हिंदू धर्म की सबसे रोचक और महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है। यह कहानी देवताओं और असुरों के बीच हुए एक अनोखे सहयोग की बात करती है, जिसमें समुद्र को मथा गया था ताकि अमृत यानी अमरता का रस प्राप्त हो सके। यह कथा न केवल रोमांचक है, बल्कि इसमें जीवन के कई गहरे सबक भी छिपे हैं। तो चलिए, शुरू करते हैं इस पौराणिक कथा !
*कहानी की शुरुआत !
बहुत समय पहले की बात है, जब दुनिया में देवता और असुर रहते थे। देवता स्वर्ग में रहते थे और अच्छाई का प्रतीक थे, जबकि असुर पाताल में रहते थे और उनकी शक्ति भी कम नहीं थी। लेकिन एक दिन ऐसा आया जब दोनों पक्ष कमजोर पड़ गए। एक श्राप की वजह से देवताओं की शक्ति कम हो गई थी, और असुर भी अपनी ताकत खोते जा रहे थे। दोनों को एक ही चीज की जरूरत थी—अमृत, जो पीने से कोई कभी मरता नहीं और हमेशा जवान रहता है।
अमृत को पाने का एक ही रास्ता था—समुद्र मंथन। मतलब समुद्र को मथना, जैसे हम दही को मथकर मक्खन निकालते हैं। लेकिन यह काम आसान नहीं था। समुद्र इतना बड़ा था कि न देवता अकेले इसे मथ सकते थे, न असुर। इसलिए दोनों ने मिलकर काम करने का फैसला किया। यह एक अनोखी बात थी, क्योंकि देवता और असुर तो हमेशा आपस में लड़ते थे!
समुद्र मंथन के लिए सबसे पहले एक बड़ा मथानी चाहिए थी। इसके लिए मंदार पर्वत को चुना गया, जो बहुत विशाल और मजबूत था। लेकिन इसे समुद्र तक लाना और फिर मथने के लिए रस्सी की जरूरत थी। तब भगवान विष्णु ने सुझाव दिया कि नागों के राजा वासुकी को रस्सी बनाया जाए। वासुकी बहुत लंबे और ताकतवर सांप थे, जो इस काम के लिए एकदम सही थे।
देवताओं और असुरों ने मंदार पर्वत को समुद्र में डाला। फिर वासुकी को पर्वत के चारों ओर लपेट दिया। अब मंथन शुरू करने का समय था। देवताओं ने वासुकी की पूंछ पकड़ी, और असुरों ने उसका सिर। दोनों ने जोर लगाना शुरू किया, लेकिन एक समस्या हो गई। मंदार पर्वत नीचे की तरफ धंसने लगा, क्योंकि समुद्र का कोई आधार नहीं था।
*भगवान विष्णु का कछुआ अवतार !
जब मंदार पर्वत डूबने लगा, तो देवता और असुर परेशान हो गए। तभी भगवान विष्णु ने अपना दूसरा अवतार लिया—कूर्म अवतार, यानी कछुआ। वे एक विशाल कछुए के रूप में समुद्र में गए और मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर उठा लिया। अब पर्वत स्थिर हो गया, और मंथन फिर से शुरू हुआ। यह देखकर सबको बहुत खुशी हुई। भगवान विष्णु की यह चतुराई इस कहानी का एक खास हिस्सा है।
*समुद्र से निकली अनोखी चीजें !
जैसे ही मंथन शुरू हुआ, समुद्र से कई चीजें बाहर आने लगीं। सबसे पहले हलाहल नाम का जहर निकला। यह इतना खतरनाक था कि उसकी गंध से ही सारी दुनिया जलने लगी। देवता और असुर डर गए। तब भगवान शिव आगे आए। उन्होंने हलाहल को अपने गले में उतार लिया ताकि दुनिया बच जाए। जहर की वजह से उनका गला नीला पड़ गया, और इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है।
*जहर के बाद समुद्र से कई अच्छी चीजें भी निकलीं। इनमें से कुछ थीं !
1.कामधेनु गाय: यह एक जादुई गाय थी, जो हर इच्छा पूरी कर सकती थी।
2.ऐरावत हाथी: यह सफेद रंग का विशाल हाथी था, जो देवराज इंद्र को मिला।
3.श्रवा घोड़ा: एक तेज और सुंदर घोड़ा।
4. पारिजात वृक्ष: यह एक ऐसा पेड़ था, जिसके फूल कभी मुरझाते नहीं।
5.लक्ष्मी जी: धन और सौभाग्य की देवी, जो भगवान विष्णु की पत्नी बनीं।
इन सबके अलावा और भी कई खजाने निकले, जिन्हें देवताओं और असुरों ने आपस में बांट लिया। लेकिन असली चीज अभी बाकी थी,अमृत!
*अमृत का प्रकट होना !
लंबे समय तक मंथन करने के बाद आखिरकार समुद्र से धन्वंतरि नाम के एक देवता प्रकट हुए। उनके हाथ में एक सुनहरा कलश था, जिसमें अमृत भरा हुआ था। इसे देखते ही देवताओं और असुरों के बीच झगड़ा शुरू हो गया। असुरों ने सोचा कि वे अमृत को छीन लेंगे, क्योंकि वे ताकतवर थे। लेकिन भगवान विष्णु ने फिर से अपनी चाल चली।
विष्णु जी ने मोहिनी नाम की एक सुंदर स्त्री का रूप लिया। मोहिनी इतनी खूबसूरत थी कि असुर उसकी ओर देखते ही मंत्रमुग्ध हो गए। मोहिनी ने कहा, "मैं तुम सबके बीच अमृत बांट दूंगी।" असुर मान गए। मोहिनी ने चालाकी से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया। जब असुरों को पता चला, तो बहुत देर हो चुकी थी।
*राहु-केतु की कहानी !
इस बीच एक असुर, राहु, चालाकी से देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और अमृत पी लिया। सूर्य और चंद्रमा ने उसे देख लिया और विष्णु जी को बता दिया। विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया। लेकिन क्योंकि राहु ने अमृत पी लिया था, वह मरा नहीं। उसका सिर राहु बन गया, और धड़ केतु। आज भी ये दोनों ग्रह सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने की कोशिश करते हैं, जिसे हम ग्रहण कहते हैं।
अमृत पीने के बाद देवता फिर से ताकतवर हो गए और असुरों को हरा दिया। इस तरह समुद्र मंथन की कहानी खत्म हुई। इस कथा से हमें कई सबक मिलते हैं। पहला, बुराई और अच्छाई के बीच कभी-कभी सहयोग भी हो सकता है। दूसरा, मेहनत और धैर्य से बड़े से बड़ा काम पूरा किया जा सकता है। और तीसरा, भगवान हमेशा अपने भक्तों की मदद करते हैं।
अमृत मंथन की यह कहानी न केवल मनोरंजक है, बल्कि यह हमें एकता, विश्वास और साहस की ताकत भी सिखाती है। इसे यह एक ऐसी कहानी है जो कभी पुरानी नहीं होगी, क्योंकि इसके पीछे का संदेश हमेशा प्रासंगिक रहेगा।
Reviewed by Health gyandeep
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अप्रैल 08, 2025
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