Rahu Ketu Story : एक रोचक हालांकि राहु और केतु एक ही शरीर के दो हिस्से थे, लेकिन उनके गुण बिल्कुल अलग ..

 हिंदू ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में राहु और केतु का नाम बहुत महत्वपूर्ण है। ये दोनों ग्रह नहीं हैं, बल्कि छाया ग्रह या गणितीय बिंदु हैं, जो चंद्रमा की कक्षा और सूर्य के मार्ग के मिलन से बनते हैं। लेकिन इनकी कहानी इतनी रोचक और अनोखी है आज हम आपको राहु और केतु की कहानी को सरल भाषा में बताएंगे, जो न सिर्फ मनोरंजक है, बल्कि ज्ञानवर्धक भी है !



*राहु और केतु कौन हैं?

राहु और केतु को समझने से पहले हमें यह जानना जरूरी है कि ये कोई ठोस ग्रह नहीं हैं, जैसे मंगल या शनि। ये दो बिंदु हैं जो सूर्य और चंद्रमा की कक्षा के बीच बनते हैं। जब सूर्य और चंद्रमा एक खास स्थिति में आते हैं, तो सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होता है। राहु को ग्रहण का कारण माना जाता है, जबकि केतु उसका दूसरा हिस्सा है। लेकिन इनकी कहानी सिर्फ विज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है, जो समुद्र मंथन से शुरू होती है।Iframe sync


*समुद्र मंथन और राहु-केतु का जन्म कैसे हुआ है!

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय देवताओं और असुरों के बीच अमृत की खोज के लिए समुद्र मंथन हुआ। इसमें मंदराचल पर्वत को मथानी और वासुकि नाग को रस्सी बनाया गया। समुद्र से कई चीजें निकलीं, जैसे लक्ष्मी जी, कामधेनु गाय और अंत में अमृत का कलश। लेकिन इस अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में झगड़ा शुरू हो गया। असुर अमृत को हथियाना चाहते थे, ताकि वे भी अमर हो सकें।


भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और असुरों को मोहित कर दिया। वे अमृत को देवताओं में बांटने लगे। लेकिन एक चतुर असुर, जिसका नाम स्वर्भानु था, यह समझ गया। उसने देवता का रूप बनाया और देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पी लिया। सूर्य और चंद्रमा ने उसे देख लिया और विष्णु जी को बता दिया। गुस्से में विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वर्भानु का सिर काट दिया।


लेकिन तब तक अमृत उसके गले तक पहुंच चुका था। सिर कटने से उसका शरीर दो हिस्सों में बंट गया। सिर वाला हिस्सा राहु बन गया और धड़ वाला हिस्सा केतु कहलाया। दोनों अमर हो गए, लेकिन अलग-अलग रूप में। राहु को सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने की इच्छा हुई, क्योंकि उन्होंने उसकी चालाकी का भंडाफोड़ किया था। इसलिए वह समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा को निगलने की कोशिश करता है, जिसे हम ग्रहण कहते हैं।



राहु को ज्योतिष में एक रहस्यमयी और शक्तिशाली छाया ग्रह माना जाता है। उसका सिर होने के कारण वह हमेशा सोचता रहता है। राहु का स्वभाव लालची और महत्वाकांक्षी है। कहते हैं कि जिन लोगों की कुंडली में राहु मजबूत होता है, वे बड़े सपने देखते हैं। वे दुनिया में नाम कमाना चाहते हैं, लेकिन कभी-कभी राहु उन्हें गलत रास्ते पर भी ले जाता है।


राहु को भौतिक सुखों का प्रतीक माना जाता है। जैसे कि धन, शोहरत, और ऐशोआराम। लेकिन उसकी एक खास बात यह है कि वह कभी संतुष्ट नहीं होता। जितना मिलता है, उतना कम लगता है। इसलिए राहु को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है, वरना वह इंसान को भटका सकता है।


*केतु का स्वभाव!

केतु, जो स्वर्भानु का धड़ है, बिल्कुल राहु के उलट है। उसके पास सिर नहीं है, इसलिए वह सोचने की बजाय अनुभव पर चलता है। केतु को आध्यात्मिकता और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है। जिन लोगों की कुंडली में केतु प्रभावशाली होता है, वे दुनिया के झूठे सुखों से दूर रहते हैं। वे सच्चाई और ईश्वर की खोज में लगे रहते हैं।


केतु का प्रभाव कभी-कभी अजीब होता है। यह इंसान को अकेला कर सकता है, लेकिन साथ ही उसे अपने अंदर की शक्ति को पहचानने में भी मदद करता है। कहते हैं कि केतु मोक्ष का रास्ता दिखाता है। जहां राहु भौतिक दुनिया में खींचता है, वहीं केतु आत्मा को ऊपर ले जाता है।


*राहु-केतु का आपस में रिश्ता!

हालांकि राहु और केतु एक ही शरीर के दो हिस्से थे, लेकिन उनके गुण बिल्कुल अलग हैं। यह एक तरह से इंसान की जिंदगी को दर्शाता है। हम सभी के अंदर दो पहलू होते हैं - एक जो दुनिया की चमक-धमक की ओर भागता है और दूसरा जो शांति और सच्चाई की तलाश करता है। राहु और केतु मिलकर हमें यह सिखाते हैं कि जिंदगी में संतुलन बहुत जरूरी है।


*राहु-केतु और ग्रहण की कहानी!

बच्चों को यह बात बहुत मजेदार लगती है कि राहु सूर्य और चंद्रमा को क्यों निगलता है। दरअसल, जब स्वर्भानु को सजा मिली, तो राहु ने ठान लिया कि वह सूर्य और चंद्रमा से बदला लेगा। इसलिए जब भी मौका मिलता है, वह उन्हें निगलने की कोशिश करता है। लेकिन क्योंकि उसका शरीर पूरा नहीं है, सूर्य और चंद्रमा कुछ देर बाद बाहर निकल आते हैं। यही कारण है कि ग्रहण कुछ देर के लिए ही होता है।


*ज्योतिष में राहु-केतु का महत्व!

हिंदू ज्योतिष में राहु और केतु को बहुत अहम माना जाता है। ये दोनों कुंडली के बारह भावों में घूमते रहते हैं और हर डेढ़ साल में अपनी जगह बदलते हैं। राहु की महादशा 18 साल की होती है, जबकि केतु की 7 साल की। इनके प्रभाव से इंसान की जिंदगी में बड़े बदलाव आते हैं। कभी ये सुख देते हैं, तो कभी दुख। लेकिन इनका असर हर इंसान पर अलग-अलग होता है।


*राहु-केतु से डरें या समझें?

कई लोग राहु और केतु से डरते हैं। वे सोचते हैं कि ये सिर्फ मुसीबत लाते हैं। लेकिन सच यह है कि ये दोनों हमें सिखाने के लिए हैं। राहु हमें मेहनत करना और सपने देखना सिखाता है, जबकि केतु हमें धैर्य और आत्म-विश्वास देता है। इनसे डरने की बजाय इन्हें समझना चाहिए।


* राहु-केतु के लिए आसान उपाय!

अगर आपको लगता है कि राहु या केतु आपकी जिंदगी में परेशानी ला रहे हैं, तो कुछ आसान उपाय हैं!

- राहु के लिए: गरीबों को खाना खिलाएं।

- केतु के लिए- कुत्तों को रोटी दें।

ये उपाय बहुत सरल हैं और कोई भी इन्हें कर सकता है।



राहु और केतु की कहानी सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि यह जिंदगी का एक सबक है। ये हमें बताते हैं कि हर इंसान के अंदर अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं। राहु हमें दुनिया की ओर खींचता है, तो केतु हमें आत्मा की शांति देता है। इन दोनों का संतुलन ही हमें सही रास्ते पर ले जाता है। इस कहानी को बच्चे, बूढ़े, और हर कोई आसानी से समझ सकता है, क्योंकि यह जटिल नहीं, बल्कि दिलचस्प और प्रेरणादायक है।



Rahu Ketu Story : एक रोचक हालांकि राहु और केतु एक ही शरीर के दो हिस्से थे, लेकिन उनके गुण बिल्कुल अलग .. Rahu Ketu Story : एक रोचक हालांकि राहु और केतु एक ही शरीर के दो हिस्से थे, लेकिन उनके गुण बिल्कुल अलग .. Reviewed by Health gyandeep on अप्रैल 08, 2025 Rating: 5
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