Memories of a traveller: moral hindi stories

 किसी छोटे से गाँव में, जहाँ हवा में फूलों की महक और खेतों की ताजगी बसी थी, एक बुजुर्ग मुसाफिर रहता था। उसका नाम था रामदास। रामदास की उम्र सत्तर पार कर चुकी थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अनोखी चमक थी, जैसे कोई अनकहा किस्सा हर पल उनमें नाचता हो। गाँव के लोग उसे "मुसाफिर बाबा" कहकर बुलाते थे, क्योंकि वह जीवन में कई देश-विदेश घूम चुका था। उसकी झोली में कहानियाँ थीं, और उसका दिल अनुभवों का खजाना।


रामदास का घर गाँव के बाहर एक छोटी-सी कुटिया थी। कुटिया के सामने एक पुराना बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे वह हर शाम गाँव के बच्चों और बड़ों को अपनी यात्राओं की कहानियाँ सुनाया करता। उसकी कहानियाँ इतनी जीवंत होती थीं कि सुनने वाले खो से जाते। लेकिन एक खास बात थी रामदास कभी अपनी सबसे प्यारी याद नहीं बताता था। जब भी कोई पूछता, "बाबा, आपकी सबसे खास याद कौन-सी है?" वह मुस्कुराकर कहता, वो याद तो मेरे दिल की किताब का आखिरी पन्ना है। उसे सही वक्त पर खोलूँगा।


एक दिन गाँव में मेला लगा। मेले में रंग-बिरंगे झूले, मिठाइयों की दुकानें और नाच-गाने का माहौल था। बच्चे, जवान और बूढ़े, सभी मेले की मस्ती में डूबे थे। लेकिन रामदास अपनी कुटिया में ही बैठा था। गाँव का एक नटखट बच्चा, मंगल, जो हमेशा रामदास की कहानियाँ सुनने आता था, मेले से भागकर बाबा के पास पहुँचा।


बाबा, आप मेले में क्यों नहीं आए? वहाँ तो इतना मजा है! मंगल ने उत्साह से पूछा।


रामदास ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "मंगल, मेले की रौनक बाहर होती है, लेकिन असली रौनक तो दिल के अंदर होती है। मेरे पास एक ऐसी याद है, जो किसी मेले से कम नहीं।"


मंगल की आँखें चमक उठीं। "बाबा, वो खास याद? बताओ ना, प्लीज!"


रामदास ने एक गहरी साँस ली और बोले, "ठीक है, बेटा। आज मैं तुम्हें वो याद सुनाऊँगा। लेकिन यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं, हर उस इंसान की है जो अपने दिल में दूसरों के लिए जगह रखता है।"


और फिर, बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर, रामदास ने अपनी कहानी शुरू की...



कई साल पहले, जब रामदास जवान था, वह एक बार हिमालय की ऊँची वादियों में भटक रहा था। उसका सपना था कि वह दुनिया के हर कोने को देखे, हर संस्कृति को समझे। एक ठंडी रात, जब बर्फबारी शुरू हो गई थी, वह एक छोटे से गाँव में रुका। वहाँ एक पुराना सराय था, जहाँ ठहरने के लिए जगह थी। सराय का मालिक, एक बूढ़ी औरत, जिसे लोग माँ काली बुलाते थे, ने उसे गर्म चाय और रोटी दी।


रामदास ने देखा कि माँ काली का चेहरा उदास था। उसने पूछा, "माँ, आप इतनी उदास क्यों हैं?"


माँ काली ने बताया कि उसका इकलौता बेटा, जिसका नाम हरी था, कई साल पहले शहर कमाने गया था। उसने वादा किया था कि वह लौटेगा, लेकिन सालों बीत गए, और उसकी कोई खबर नहीं आई। माँ काली का दिल टूट चुका था, लेकिन वह हर दिन अपने बेटे की राह देखती थी।


रामदास को माँ काली की बातें सुनकर बहुत दुख हुआ। उसने सोचा, "मैं तो मुसाफिर हूँ। दुनिया घूमता हूँ। शायद मैं हरी को ढूँढ सकूँ।" उसने माँ काली से हरी का हुलिया और कुछ निशानियाँ पूछीं, और वादा किया कि वह उसे ढूँढने की कोशिश करेगा।



अगले दिन रामदास ने अपनी यात्रा शुरू की, लेकिन इस बार उसका मकसद सिर्फ घूमना नहीं था। वह हर शहर, हर गाँव में हरी की खोज करता। वह लोगों से पूछता, चिट्ठियाँ लिखता, और हर जगह माँ काली की कहानी सुनाता। साल बीत गए। रामदास की जेब में पैसे कम होते गए, लेकिन उसका हौसला कभी नहीं डगमगाया।


एक दिन, जब वह एक बड़े शहर के बाजार में था, उसने एक चाय की दुकान पर एक आदमी को देखा। वह आदमी थका-हारा सा था, लेकिन उसकी आँखें माँ काली की आँखों से मिलती-जुलती थीं। रामदास ने हिम्मत करके उससे बात की। उसका नाम हरी था। हरी ने बताया कि वह शहर में काम की तलाश में आया था, लेकिन एक दुर्घटना में उसका पैर टूट गया। वह गरीबी में डूब गया और माँ को चिट्ठी लिखने का साहस नहीं जुटा पाया 


दूसरों के लिए बिना स्वार्थ के की गई मदद, जीवन की सबसे बड़ी याद बन जाती है। सच्ची खुशी दूसरों को खुश करने में है।


Memories of a traveller: moral hindi stories Memories of a traveller: moral hindi stories Reviewed by Health gyandeep on अप्रैल 25, 2025 Rating: 5
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