jindagee ke rang : moral stories in Hindi

 किसी छोटे से गाँव में, जहाँ हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू और पेड़ों की सरसराहट गूँजती थी, एक बूढ़ा चित्रकार रहता था। उसका नाम था नंदलाल। नंदलाल की उम्र सत्तर के पार थी, पर उसकी आँखों में चमक और हाथों में जादू अभी भी बरकरार था। गाँव वाले उसे "रंगों का जादूगर" कहते थे, क्योंकि वह अपनी तूलिका से कैनवास पर ऐसी तस्वीरें उकेरता कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाए। लेकिन नंदलाल की सबसे बड़ी खासियत थी उसकी कहानियाँ। वह हर तस्वीर के पीछे एक कहानी बुनता और उसे बच्चों, बूढ़ों और जवान सबके साथ बाँटता।



एक दिन गाँव में मेला लगा। मेले में रंग-बिरंगे झूले, मिठाइयों की दुकानें और बच्चों की हँसी गूँज रही थी। नंदलाल ने भी अपना छोटा सा तंबू लगाया, जिसमें उसने अपनी तस्वीरें सजाईं। तंबू के बाहर एक तख्ती पर लिखा था, "जिंदगी के रंग  एक तस्वीर, एक कहानी।" गाँव के बच्चे, बूढ़े और जवान एक-एक कर उसके तंबू में आने लगे।


सबसे पहले एक छोटी सी लड़की, राधा, दौड़ती हुई आई। उसने नंदलाल की एक तस्वीर देखी, जिसमें नीले आकाश में एक चिड़िया उड़ रही थी। राधा ने पूछा, "बाबा, ये चिड़िया इतनी खुश क्यों है?"


नंदलाल मुस्कुराए और बोले, "बेटी, ये चिड़िया आजाद है। लेकिन आजादी उसे आसानी से नहीं मिली।" फिर उन्होंने कहानी शुरू की।




कई साल पहले एक घने जंगल में एक छोटी सी चिड़िया रहती थी। उसका नाम था चंचल। चंचल की चहचहाहट से जंगल में रौनक रहती थी। लेकिन एक दिन एक शिकारी ने उसे अपने जाल में फँसा लिया और एक सुनहरे पिंजरे में बंद कर दिया। पिंजरा सुंदर था, खाना-पानी सब मिलता था, पर चंचल की चहचहाहट गायब हो गई। वह उदास रहने लगी।


एक दिन पिंजरे के पास एक बूढ़ा कबूतर आया। उसने चंचल की उदासी देखी और पूछा, "क्यों उदास हो, छोटी बहन?" चंचल ने रोते हुए कहा, "मुझे आसमान चाहिए, हवा चाहिए, मेरे पंखों को आजादी चाहिए।"


कबूतर ने कहा, "आजादी माँगने से नहीं, मेहनत से मिलती है। हर दिन अपने पंखों को मजबूत करो, पिंजरे की कमजोरी ढूँढो।" चंचल ने उसकी बात मानी। उसने हर दिन अपने पंख फड़फड़ाए, पिंजरे की सलाखों को देखा और एक दिन पाया कि एक सलाख ढीली है। उसने पूरी ताकत लगाकर उसे हिलाया और आखिरकार पिंजरा तोड़कर उड़ गई।


जब चंचल ने फिर से नीले आकाश में उड़ान भरी, उसकी चहचहाहट जंगल में गूँज उठी। वह आजाद थी, क्योंकि उसने हार नहीं मानी थी।


राधा की आँखें चमक उठीं। उसने कहा, "बाबा, मैं भी मेहनत करूँगी, कभी हार नहीं मानूँगी!" नंदलाल ने उसका माथा चूमा और उसे एक छोटी सी तूलिका दी।


थोड़ी देर बाद एक अधेड़ उम्र का किसान, रामू, तंबू में आया। उसने एक तस्वीर देखी, जिसमें एक सूखा पेड़ और उसके पास एक हरा-भरा पौधा था। रामू ने कहा, "बाबा, ये सूखा पेड़ तो मेरे जैसे है। मेरी जिंदगी में अब कोई रंग नहीं बचा।"


नंदलाल ने उसकी पीठ थपथपाई और बोले, "रामू, हर सूखे पेड़ के पास एक हरा पौधा होता है। सुनो इसकी कहानी।"




एक गाँव में एक बूढ़ा पेड़ था। उसकी टहनियाँ सूख चुकी थीं, पत्तियाँ झड़ चुकी थीं। गाँव वाले उसे काटने की बात करते थे। लेकिन पेड़ के नीचे एक छोटा सा पौधा उग आया। पौधा हर दिन पेड़ से बात करता, "बाबा, तुमने मुझे छाया दी, अब मैं तुम्हें हरा करूँगा।"


पेड़ हँसता और कहता, "मेरी उम्र हो चुकी, बेटा।" लेकिन पौधा हार नहीं माना। उसने अपनी जड़ों से पानी खींचा, पेड़ की जड़ों तक पहुँचाया। धीरे-धीरे पेड़ की टहनियों में हल्की सी हरियाली लौटी। गाँव वालों ने देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पेड़ को काटने का इरादा छोड़ दिया।


पौधे ने पेड़ को सिर्फ पानी नहीं दिया, बल्कि उम्मीद दी थी। उसने सिखाया कि अगर कोई तुम्हारे लिए कुछ करता है, तो तुम भी उसके लिए कुछ कर सकते हो।


रामू की आँखें नम हो गईं। उसने कहा, "बाबा, मैं अपने बच्चों के लिए फिर से मेहनत करूँगा। उनके लिए हरा पौधा बनूँगा।" नंदलाल ने उसे एक बीज दिया और कहा, "इसे बोना, और देखना, जिंदगी फिर से हरी हो जाएगी।"


शाम ढलते-ढलते एक बूढ़ी औरत, मंगल की अम्मा, तंबू में आई। उसने एक तस्वीर देखी, जिसमें एक टूटा हुआ दीया था, लेकिन उसकी लौ अभी भी जल रही थी। अम्मा ने कहा, "बाबा, मेरा दीया भी टूट चुका है। अब क्या बाकी है जिंदगी में?"


नंदलाल ने उसका हाथ थामा और बोले, "अम्मा, टूटा दीया भी रौशनी देता है। सुनो इसकी कहानी।"




एक छोटे से मंदिर में एक पुराना दीया था। वह मंदिर की हर पूजा में जलता, लेकिन समय के साथ उसमें दरारें पड़ गईं। मंदिर का पुजारी उसे बदलने की सोचने लगा। लेकिन एक रात, जब आँधी आई और मंदिर की सारी बत्तियाँ बुझ गईं, वही टूटा दीया जलता रहा। उसकी छोटी सी लौ ने मंदिर को रौशनी दी।


सुबह पुजारी ने दीये को देखा और उसे एहसास हुआ कि टूटा हुआ होने का मतलब खत्म होना नहीं है। उसने दीये को मंदिर के बीच में रखा और हर पूजा में उसे जलाया। दीया अपनी दरारों के साथ भी रौशनी बिखेरता रहा।


अम्मा ने गहरी साँस ली और बोलीं, "बाबा, मैं भी अपनी जिंदगी की रौशनी बिखेरूँगी।" नंदलाल ने उन्हें एक छोटा सा दीया दिया और कहा, "इसे जलाओ, और देखो, तुम्हारी रौशनी कितनों को रास्ता दिखाएगी।"


मेले की रात खत्म हुई। नंदलाल का तंबू खाली हो गया, लेकिन गाँव वालों के दिल रंगों से भर गए। राधा ने मेहनत शुरू की, रामू ने अपने बच्चों के लिए नई शुरुआत की, और मंगल की अम्मा ने गाँव के बच्चों को कहानियाँ सुनाना शुरू किया। नंदलाल की तस्वीरें सिर्फ कैनवास पर नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में जिंदगी के रंग भर गईं।


जिंदगी में रंग तब आते हैं, जब हम हार नहीं मानते, दूसरों के लिए कुछ करते हैं, और अपनी रौशनी को बिखेरते हैं, चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएँ।


jindagee ke rang : moral stories in Hindi jindagee ke rang : moral stories in Hindi Reviewed by Health gyandeep on अप्रैल 25, 2025 Rating: 5
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