ram aur sita Ka vivah :जो भी उस धनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंचा वही सीता से विवाह वही करेगा

 राम और सीता का विवाह न केवल एक पवित्र बंधन था, बल्कि यह एक ऐसी कहानी है जो आज भी हर दिल को छूती है। यह कहानी प्रेम, विश्वास, और संस्कारों की मिसाल है। आइए, इसे एक नए और आसान अंदाज में जानते हैं, जैसे कोई दादी-नानी बच्चों को सुनाती हैं !


* राम कौन थे?

राम, अयोध्या के राजकुमार थे। उनके पिता राजा दशरथ थे, जिनके चार बेटे थे—राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। राम सबसे बड़े थे और सबसे प्यारे भी। ऐसा कहा जाता है कि राम का चेहरा चाँद की तरह सुंदर था, और उनका दिल समंदर जितना गहरा। वो हमेशा सच बोलते थे, सबकी मदद करते थे, और कभी किसी का बुरा नहीं चाहते थे। लेकिन वो तलवार या ढाल से नहीं, अपने अच्छे कामों से दुनिया जीतते थे।



*सीता कौन थीं !

दूसरी तरफ थीं सीता। वो मिथिला की राजकुमारी थीं। उनके पिता राजा जनक थे, जो बड़े ज्ञानी और दयालु थे। सीता का जन्म थोड़ा अलग था। वो किसी के पेट से नहीं, बल्कि धरती माँ की गोद से प्रकट हुई थीं। जब राजा जनक खेत जोत रहे थे, तब उन्हें मिट्टी में एक सोने का घड़ा मिला, जिसमें छोटी-सी सीता थीं। वो इतनी प्यारी थीं कि देखते ही जनक का दिल पिघल गया। सीता को लोग "धरती की बेटी" कहते थे। वो न केवल सुंदर थीं, बल्कि बहुत समझदार, हिम्मती, और दयालु भी थीं।


* कैसे मिले राम और सीता?

अब आता है वो पल, जब राम और सीता की राहें मिलीं। मिथिला में एक बड़ा आयोजन हो रहा था ! सीता का स्वयंवर। स्वयंवर मतलब एक तरह का "प्रतियोगिता विवाह", जिसमें राजकुमारी अपने लिए वर चुनती थी। राजा जनक ने एक अनोखी शर्त रखी थी। उनके पास भगवान शिव का एक विशाल धनुष था, जो इतना भारी था कि कोई उसे हिला भी नहीं सकता था। शर्त थी कि जो भी उस धनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंचा (रस्सी) चढ़ाएगा, वही सीता से विवाह करेगा।


दूर-दूर से राजा-महाराजा आए। कोई अपनी ताकत दिखाने, तो कोई सीता की सुंदरता का दीवाना बनकर। लेकिन वो धनुष? अरे, वो तो पत्थर की तरह अड़ा रहा। कोई उसे टस से मस नहीं कर पाया। सबके चेहरे लटक गए। कुछ तो गुस्से में बड़बड़ाने लगे, "ये धनुष तो जादुई है, कोई इंसान इसे कैसे उठाएगा?"


तब वहाँ आए राम, अपने गुरु विश्वामित्र और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ। राम को देखते ही मिथिला के लोग हैरान रह गए। उनकी आँखों में शांति थी, चेहरे पर मुस्कान थी, और दिल में आत्मविश्वास। जनक ने राम को धनुष की ओर इशारा किया। राम ने पहले धनुष को प्रणाम किया, फिर उसे उठाया जैसे कोई बच्चा अपनी पतंग उठाता है। फिर, एक झटके में उन्होंने प्रत्यंचा चढ़ाई। लेकिन रुकिए, कहानी में ट्विस्ट है! धनुष इतनी जोर से टूटा कि उसकी आवाज़ मिथिला के कोने-कोने में गूँज गई।



सीता उस वक्त पास ही खड़ी थीं। उन्होंने जब राम को देखा, तो उनका दिल धक-धक करने लगा। वो सोचने लगीं, "ये कौन हैं, जो इतने शांत और सौम्य हैं, फिर भी इतनी ताकत रखते हैं?" जब धनुष टूटा, तो सीता की आँखें खुशी से चमक उठीं। उन्हें पता चल गया था कि उनका हमसफर मिल गया है। सीता ने राम के गले में वरमाला डाली, और उस पल को देखकर सबकी आँखें नम हो गईं।


*विवाह की तैयारियाँ !

अब शुरू हुई विवाह की तैयारियाँ। अयोध्या और मिथिला दोनों जगह उत्सव का माहौल था। अयोध्या से राजा दशरथ अपनी तीनों रानियों—कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी—के साथ मिथिला आए। मिथिला को फूलों, रंगों और दीयों से सजाया गया। बाजारों में मिठाइयाँ बन रही थीं, बच्चे नाच रहे थे, और बूढ़े लोग आशीर्वाद देने में व्यस्त थे।


विवाह का दिन बड़ा ही शानदार था। राम दूल्हे के रूप में सजे थे। सुनहरी शेरवानी, माथे पर तिलक, और हाथ में तलवार—वो किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहे थे। सीता लाल जोड़े में थीं। उनकी साड़ी पर चाँद-तारों जैसी कढ़ाई थी, और माथे पर बिंदिया ऐसी चमक रही थी जैसे कोई तारा धरती पर उतर आया हो।



विवाह की रस्में बड़ी सादगी और प्यार से हुईं। सबसे पहले गणेश पूजा हुई, ताकि कोई विघ्न न आए। फिर राम और सीता ने एक-दूसरे को माला पहनाई। सीता के भाई-बहनों ने भी इस मौके को खास बनाया। सीता की बहनें उर्मिला, मांडवी, और श्रुतकीर्ति भी वहीं थीं। मजेदार बात ये थी कि राम के तीनों भाइयों,लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का विवाह भी उसी मंडप में सीता की बहनों से तय हो गया। ये था चार-चार शादियों का धमाल! मिथिला में जैसे खुशियों का मेला लग गया।


जब राम और सीता ने सात फेरे लिए, तो हर फेरे में एक वचन था। राम ने वचन दिया कि वो हमेशा सीता का साथ देंगे, और सीता ने कहा कि वो हर सुख-दुख में राम की ढाल बनेंगी। वो पल इतना पवित्र था कि आसमान में देवता भी फूल बरसा रहे थे।



राम और सीता का विवाह सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं था। ये दो दिलों, दो परिवारों, और दो शहरों का संगम था। राम का शांत स्वभाव और सीता की हिम्मत एक-दूसरे के पूरक थे। वो एक-दूसरे को समझते थे, बिना कुछ कहे। अगर राम कोई फैसला लेते, तो सीता उनकी ताकत बनतीं। और अगर सीता को कोई मुश्किल आती, तो राम उनके लिए पहाड़ की तरह खड़े रहते।



इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है? सबसे पहले, प्रेम का मतलब सिर्फ हँसी-मजाक नहीं, बल्कि एक-दूसरे का सम्मान करना है। राम और सीता ने हमेशा एक-दूसरे की इज्जत की। दूसरा, मेहनत और विश्वास से कोई भी काम मुश्किल नहीं। जैसे राम ने धनुष उठाया, वैसे ही हमें अपने लक्ष्य के लिए मेहनत करनी चाहिए। और तीसरा, परिवार का प्यार सबसे बड़ा खजाना है। राम और सीता ने अपने परिवार को हमेशा साथ रखा।



बुजुर्गों के लिए ये कहानी एक याद दिलाती है कि संस्कार और सादगी कभी पुराने नहीं होते। राम और सीता ने दिखाया कि सच्चा रिश्ता वही है, जो विश्वास और समझ पर टिका हो। आज के दौर में, जहाँ रिश्ते जल्दी टूट जाते हैं, उनकी कहानी हमें धैर्य और प्यार की ताकत सिखाती है।



राम और सीता का विवाह सिर्फ एक धार्मिक कहानी है। जो हमें बताती है कि सच्चा प्यार वही है, जो मुश्किलों में भी डटा रहे। राम और सीता ने बाद में भी कई मुश्किलें देखीं, लेकिन वो कभी अलग नहीं हुए। उनकी कहानी हमें हिम्मत देती है कि चाहे कितनी भी मुश्किल आए, प्यार और विश्वास से सब कुछ संभव है।



राम और सीता का विवाह एक उत्सव था—प्यार का, विश्वास का, और संस्कारों का। ये कहानी हर उम्र के लिए है। बच्चे इसे सुनकर सपने देखते हैं, जवान इसे पढ़कर धार्मिक सीखते हैं, और बुजुर्ग इसे याद करके मुस्कुराते हैं। आइए, हम भी इस कहानी को अपने दिल में बसाएँ और अपने रिश्तों को और मजबूत करें।


ram aur sita Ka vivah :जो भी उस धनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंचा वही सीता से विवाह वही करेगा ram aur sita Ka vivah :जो भी उस धनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंचा वही सीता से विवाह वही करेगा Reviewed by Health gyandeep on अप्रैल 13, 2025 Rating: 5
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