short moral story: रिश्तों की डोर हिंदी कहानी !

एक छोटा-सा गांव था, जिसका नाम था सुखनगर। इस गांव में हर तरफ हरियाली, फूलों की महक और पक्षियों की चहचहाहट थी। गांव के बीचों-बीच एक पुराना बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे लोग शाम को इकट्ठा होकर बातें करते, हंसते और अपने सुख-दुख बांटते। इस गांव में एक खास बात थी यहां के लोग एक-दूसरे से रिश्तों की डोर से बंधे थे, जो न दिखती थी, न टूटती थी, पर उसकी मज़बूती हर दिल को महसूस होती थी।


सुखनगर में एक परिवार रहता था रामू चाचा, उनकी पत्नी सरला, उनका बेटा गोपाल और गोपाल की छोटी-सी बेटी रानी। रामू चाचा गांव के सबसे बुजुर्ग और समझदार इंसान थे। उनकी बातों में जादू था। जब भी कोई परेशानी में होता, रामू चाचा के पास जाता और उनकी सलाह से हर मुश्किल आसान हो जाती। लेकिन इन दिनों रामू चाचा थोड़े उदास रहने लगे थे। गांव में कुछ बदलाव हो रहे थे। लोग अब बरगद के पेड़ के नीचे कम इकट्ठा होते, अपने-अपने घरों में मोबाइल और टीवी में खोए रहते। रिश्तों की वो गर्माहट कहीं खो-सी रही थी।


एक दिन रानी, जो सिर्फ सात साल की थी, अपने दादाजी रामू चाचा के पास आई। उसने देखा कि दादाजी बरगद के पेड़ के नीचे अकेले बैठे कुछ सोच रहे हैं। रानी ने मासूमियत से पूछा, “दादाजी, आप उदास क्यों हैं? पहले तो आप हमेशा हंसते थे और कहानियां सुनाते थे।”


रामू चाचा ने रानी को गोद में बिठाया और मुस्कुराते हुए कहा, “बेटी, मैं उदास नहीं हूं, बस सोच रहा हूं कि हमारे गांव की रिश्तों की डोर कमजोर क्यों हो रही है। पहले लोग एक-दूसरे के लिए वक्त निकालते थे, अब सब अपने में व्यस्त हैं।”


रानी ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से पूछा, “रिश्तों की डोर? ये क्या होती है, दादाजी?”


रामू चाचा ने गहरी सांस ली और एक कहानी शुरू की, “बेटी, सुन, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। ये कहानी है रिश्तों की डोर की।


कई साल पहले सुखनगर में एक लड़का रहता था, जिसका नाम था श्याम। श्याम बहुत मेहनती और नेकदिल था, लेकिन उसका एक दोस्त था, मोहन, जो थोड़ा लालची और स्वार्थी था। श्याम और मोहन की दोस्ती पूरे गांव में मशहूर थी। दोनों साथ खेलते, खेतों में काम करते और एक-दूसरे की मदद करते। लेकिन एक दिन गांव में एक जादूगर आया। उसने कहा कि उसके पास एक जादुई डोर है, जो रिश्तों को मजबूत करती है। उसने गांव वालों को बताया कि अगर कोई इस डोर को अपने और अपने प्रियजनों के बीच बांध ले, तो उनका रिश्ता कभी नहीं टूटेगा। लेकिन एक शर्त थी—इस डोर को सिर्फ सच्चे दिल और निस्वार्थ प्यार से बांधा जा सकता है।


श्याम ने ये बात सुनी और सोचा कि वो इस डोर को अपने दोस्त मोहन के साथ बांधेगा। उसने जादूगर से डोर मांगी। जादूगर ने श्याम की आंखों में देखा और कहा, “बेटा, ये डोर सिर्फ तभी काम करेगी जब तुम दोनों का प्यार सच्चा हो।” श्याम ने खुशी-खुशी डोर ले ली और मोहन के पास गया। उसने मोहन को सारी बात बताई और कहा, “चल, हम इस डोर को अपनी दोस्ती में बांध लेते हैं।”


मोहन ने डोर को देखा और हंसते हुए बोला, “श्याम, ये तो बस एक रस्सी है। इसमें क्या जादू? और वैसे भी, मुझे ये सब नाटक में यकीन नहीं।” श्याम को मोहन की बात सुनकर दुख हुआ, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने डोर को अपने दिल से मोहन की दोस्ती से बांध लिया और मन ही मन प्रार्थना की, “हमारी दोस्ती हमेशा मजबूत रहे।”


कुछ महीने बाद गांव में एक बड़ा मेला लगा। मेले में एक व्यापारी आया, जिसने मोहन को लालच दिया कि अगर वो शहर जाकर उसके साथ काम करेगा, तो बहुत सारा पैसा कमा सकता है। मोहन के मन में लालच आ गया। उसने श्याम से बिना कुछ कहे गांव छोड़ने का फैसला कर लिया। श्याम को जब ये पता चला, तो वो बहुत दुखी हुआ। उसने मोहन को रोकने की कोशिश की, लेकिन मोहन ने कहा, “श्याम, मुझे अब पैसा चाहिए। दोस्ती से पेट नहीं भरता।”


मोहन शहर चला गया। श्याम अकेला रह गया। लेकिन उसने अपनी दोस्ती की डोर को कभी कमजोर नहीं होने दिया। वो हर दिन मोहन के लिए अच्छा सोचता, उसकी सलामती की दुआ करता। उधर, शहर में मोहन को जल्दी ही समझ आ गया कि व्यापारी ने उसे धोखा दिया। उसे न तो पैसा मिला, न इज्जत। वो उदास और अकेला हो गया। एक रात, जब वो अपने टूटे-फटे कमरे में बैठा था, उसे श्याम की बातें याद आईं। उसे वो जादुई डोर याद आई, जिसे श्याम ने इतने प्यार से बांधा था।


मोहन का दिल भर आया। उसने फैसला किया कि वो गांव लौटेगा। जब वो सुखनगर पहुंचा, तो श्याम उसे देखकर दौड़ा और गले लगा लिया। मोहन ने माफी मांगी और कहा, “श्याम, तुमने हमारी दोस्ती की डोर को कभी टूटने नहीं दिया। मैंने तुम्हें इतना दुख दिया, फिर भी तुमने मुझ पर भरोसा रखा।”


श्याम ने मुस्कुराते हुए कहा, “मोहन, रिश्तों की डोर दिखती नहीं, पर वो दिल से दिल को जोड़ती है। अगर प्यार और भरोसा हो, तो कोई भी रिश्ता टूट नहीं सकता।”



रानी ने ये कहानी सुनकर ताली बजाई और बोली, “दादाजी, तो रिश्तों की डोर का मतलब है प्यार और भरोसा?”


रामू चाचा ने हंसकर कहा, “बिल्कुल, बेटी। और ये डोर तब और मजबूत होती है, जब हम एक-दूसरे के लिए वक्त निकालते हैं, एक-दूसरे की परवाह करते हैं।”


रानी ने उत्साह से कहा, “दादाजी, मैं गांव में सबको ये कहानी सुनाऊंगी। और हम सब फिर से बरगद के पेड़ के नीचे इकट्ठा होंगे।


रानी ने सचमुच ऐसा ही किया। उसने गांव के बच्चों, बड़ों और बूढ़ों को ये कहानी सुनाई। धीरे-धीरे लोग फिर से बरगद के पेड़ के नीचे जमा होने लगे। हंसी-मजाक, कहानियां और रिश्तों की गर्माहट लौट आई। सुखनगर फिर से पहले जैसा खुशहाल हो गया।


रिश्तों की डोर नाजुक होती है, पर अगर उसे प्यार, भरोसे और वक्त से बांधा जाए, तो वो कभी नहीं टूटती। अपने रिश्तों को समय दो, क्योंकि यही जिंदगी का असली खजाना है।

short moral story: रिश्तों की डोर हिंदी कहानी !  short moral story: रिश्तों की डोर हिंदी कहानी ! Reviewed by Health gyandeep on अप्रैल 21, 2025 Rating: 5
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