रामायण की कहानी हर दिल को छूती है। इसमें भगवान श्रीराम की वीरता, माता सीता की पवित्रता, और हनुमान जी की भक्ति की महक है। लेकिन आज हम रावण वध की कहानी को हम अपनी वेबसाइट पर सुनाएंगे, लंका में रावण का राज था। सोने की लंका, जहाँ हर तरफ चमक-दमक थी। रावण कोई साधारण राजा नहीं था। वह विद्वान था, शिव भक्त था, और दस सिरों वाला राक्षस राजा था। लेकिन उसका अहंकार? वो तो आसमान छूता था। उसे लगता था कि दुनिया में उससे बड़ा कोई नहीं। उसने सोचा, मैंने तो स्वर्ग तक को जीत लिया, अब कोई मुझे हरा ही नहीं सकता।
लेकिन अहंकार इंसान को अंधा कर देता है। रावण ने जब माता सीता का हरण किया, तब उसने अपनी किस्मत का दरवाजा खुद बंद कर लिया। माता सीता, जो भगवान राम की पत्नी थीं, उनकी पवित्रता और धैर्य की मिसाल थीं। रावण ने उन्हें अशोक वाटिका में कैद कर लिया, लेकिन सीता जी ने हिम्मत नहीं हारी। वे रोज राम का नाम जपती थीं और प्रतीक्षा करती थीं कि राम आएंगे और उन्हें बचाएंगे।
उधर, भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण और भक्त हनुमान के साथ सीता की खोज में निकले। राम कोई साधारण इंसान नहीं थे। वे मर्यादा पुरुषोत्तम थे, जिनके लिए धर्म और सत्य सबसे बड़े थे। लेकिन उनका दिल भी एक पति का दिल था, जो अपनी पत्नी को वापस लाना चाहता था।
हनुमान जी, जो राम के सबसे बड़े भक्त थे, ने समुद्र लांघकर लंका में सीता का पता लगाया। उन्होंने सीता को रावण के बगीचे में देखा और राम का संदेश दिया। सीता ने हनुमान से कहा, राम को बोलो, जल्दी आओ। मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ। हनुमान ने लंका में आग लगाकर रावण को अपनी ताकत का अहसास कराया और वापस राम के पास लौट आए।
राम ने सुग्रीव की वानर सेना और विभीषण, जो रावण का भाई था लेकिन धर्म के रास्ते पर था, की मदद से लंका की ओर कूच किया। समुद्र को पार करने के लिए राम ने नल-नील की मदद से एक विशाल सेतु बनवाया। यह सेतु आज भी रामसेतु के नाम से जाना जाता है। वानर सेना, भालू, और राम के भक्तों ने मिलकर ऐसा जोश दिखाया कि समुद्र भी उनके सामने झुक गया।
लंका में युद्ध का बिगुल बज गया। रावण की सेना विशाल थी। उसके पास मायावी राक्षस, बड़े-बड़े रथ, और जादुई शक्तियाँ थीं। लेकिन राम की सेना में भक्ति और साहस था। हनुमान, अंगद, जामवंत, और लक्ष्मण जैसे वीर हर पल राम के साथ खड़े थे।
युद्ध के पहले दिन से ही दोनों तरफ से तीर, गदाएँ, और जादुई हथियार चले। रावण के बेटे मेघनाद ने अपने मायावी तीरों से लक्ष्मण को घायल कर दिया। लेकिन हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण को बचा लिया। यह देखकर रावण का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने सोचा, ये राम कौन हैं, जो मेरी सेना को चुनौती दे रहे हैं?
राम और रावण का युद्ध अब आमने-सामने होने वाला था। रावण अपने सुनहरे रथ पर सवार होकर मैदान में उतरा। उसके दस सिर और बीस भुजाएँ देखकर वानर सेना भी थोड़ा डर गई। लेकिन राम शांत थे। उनके हाथ में धनुष था, और आँखों में धर्म का प्रकाश।
राम और रावण का युद्ध ऐसा था, मानो सूरज और अंधेरे की टक्कर हो। रावण ने अपने सारे जादुई तीर चलाए। उसने मायावी शक्तियों से राम को भ्रम में डालने की कोशिश की। लेकिन राम के तीरों में सत्य की ताकत थी। उन्होंने एक-एक कर रावण के सिर काटे, लेकिन हर बार नया सिर उग आता।
तब विभीषण ने राम को बताया, रावण की नाभि में अमृत है। उसी को निशाना बनाओ। राम ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर एक विशेष तीर चलाया, जो सीधे रावण की नाभि में जाकर लगा। रावण चीखा, और उसका विशाल शरीर धरती पर गिर पड़ा। लंका में सन्नाटा छा गया। रावण का अंत हो गया।
राम ने रावण को मारने के बाद भी उसका सम्मान किया। उन्होंने कहा, रावण एक महान विद्वान और योद्धा था, लेकिन उसका अहंकार उसकी हार का कारण बना।” राम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया और सीता को अशोक वाटिका से मुक्त कराया।
सीता जब राम के पास आईं, तो कुछ लोगों ने उनके चरित्र पर सवाल उठाए। यह सुनकर राम का दिल दुखा, लेकिन उन्होंने समाज के सामने सीता की पवित्रता साबित करने के लिए अग्निपरीक्षा की बात कही। सीता ने बिना डरे अग्निकुंड में प्रवेश किया। अग्निदेव ने सीता की पवित्रता को स्वीकार किया, और वे बिना किसी नुकसान के बाहर आईं। राम और सीता फिर से एक हो गए।
रावण वध की यह कहानी हमें सिखाती है कि अहंकार और अधर्म का रास्ता हमें कितना भी बड़ा बना दे, उसका अंत हमेशा बुरा होता है। राम का जीवन हमें धैर्य, सत्य, और मर्यादा का पाठ पढ़ाता है। हनुमान हमें भक्ति और निष्ठा की सीख देते हैं। और सीता हमें हिम्मत और विश्वास का महत्व बताती हैं।
यह कहानी बच्चों को सिखाती है कि बुराई कितनी भी ताकतवर हो, सच और अच्छाई हमेशा जीतती है। बूढ़ों को याद दिलाती है कि जीवन में धैर्य और विश्वास कभी नहीं छोड़ना चाहिए। और हर इंसान को बताती है कि अपने अंदर के रावण यानी अहंकार और लालच को हराना जरूरी है।
रावण वध सिर्फ एक युद्ध की कहानी नहीं, बल्कि हमारे अंदर की अच्छाई और बुराई की लड़ाई है। इसे पढ़कर बच्चे हनुमान की तरह हिम्मती बनें, बड़े राम की तरह धैर्यवान, और हर इंसान सीता की तरह विश्वास से भरा हो।
